मैं अब थक चुका हूं। आदेश के बाद भी तहसीलदार और पटवारी काम नहीं कर रहे। रोज-रोज अपमानित होना पड़ता है। अगर रास्ता नहीं खुल सकता तो कृपा करके मुझे और मेरी मां को इच्छा मृत्यु की अनुमति दी जाए।
ये दर्द है दिव्यांग रमेश कुमार का। 50 साल के रमेश पैरों से चल नहीं सकते है। उन्हें चलने के लिए पैरों को हाथ से सपोर्ट करना पड़ता है।
इसके बावजूद वे अपनी एक रिश्तेदार राधा के साथ झुंझुनूं कलेक्ट्रेट की करीब 50 सीढ़ियां चढ़कर कलेक्टर ऑफिस पहुंचे और मां केसर देवी सहित खुद के लिए इच्छा मृत्यु की गुहार लगाई।
दरअसल, ग्राम दुर्जनपुरा, तहसील और जिला झुंझुनूं के खसरा नंबर 69 में उनका एक खेत है, जो उनकी पुश्तैनी जमीन है। रमेश कुमार यहीं ढाणी में घर बनाकर रहते है। पिता का देहांत हो चुका है और मां केसर देवी 75 साल की है और दिल की बीमारी से पीड़ित है। रमेश दोनों पैरों से दिव्यांग है।
रमेश ने बताया कि उपखंड अधिकारी ने रास्ता ‘कटान शुदा’ मतलब पहले से कटा हुआ रास्ता घोषित कर आदेश भी दिया है। लेकिन तहसीलदार और पटवारी के टालमटोल रवैये ने अब मुझे तोड़ दिया है। इसलिए अब जिला कलेक्टर के सामने इच्छा मृत्यु की गुहार लगाई हैं।

50 साल पुराना रास्ता बंद किया
उनके अनुसार- ढाणी तक पहुंचने के लिए जो रास्ता है, वह कोई नया नहीं, बल्कि कदीमी रास्ता है, जो 50- 60 पुराना है। लेकिन पड़ोसी खेत मालिक चूनाराम, पूर्णाराम और हनुमानाराम के हिस्सों से होकर ही यह रास्ता खसरा नंबर 69 तक पहुंचता है।
रमेश कुमार के अनुसार- अब वर्तमान खातेदार इस रास्ते से होने वाली आवाजाही पर रोक लगाने लग गए है। वे इस बंद करना चाहते हैं।
रमेश का कहना हैं- हमने जीवन यहीं बिताया। खेत में ढाणी है, रोजमर्रा का सब सामान यहीं से आता है। अब रास्ता रोक दिया है तो मानो हमें कैद कर दिया हो। घर है, लेकिन पहुंच नहीं सकते हैं। दूसरे के खेतों में से होकर आना पड़ता है।
उपखंड अधिकारी ने दिया था आदेश इसी साल 18 जुलाई को उपखंड अधिकारी, झुंझुनूं ने आदेश (क्रमांक 314) जारी कर इस रास्ते को ‘कटान शुदा’ मतलब पहले से तय रास्ता घोषित कर दिया। मतलब, प्रशासन ने मान लिया कि यह रास्ता रमेश और उसकी मां का जायज हक है। लेकिन आदेश के बावजूद जमीन पर कुछ नहीं बदला है।
रमेश का कहना है- पड़ोसी खातेदारों ने आदेश के खिलाफ संभागीय आयुक्त, जयपुर के पास अपील की है। उन्हें 2 महीने बाद भी स्टे नहीं मिला। यानी कानूनी रूप से रास्ता हमारा ही होना चाहिए। लेकिन हकीकत यह है कि वह रास्ता आज भी बंद है, मैं हाथ जोड़कर दर-दर भटक रहा हूं। अगर समाधान नहीं हुआ और इच्छामृत्यु की परमिशन दे दे।
मामले में कलेक्टर डॉ. अरूण गर्ग ने कहा- मैंने तहसीलदार को बोल दिया है। वे रिकॉर्ड को दुरुस्त कर रहे हैं। 2 दिन का टाइम दिया है। इनको दुबारा नहीं आना पड़ेगा।
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